Friday, 31 May 2019

ब्रॉलर फ़ार्मिंग का भूत वाइरल

ब्रॉलर फ़ार्मिंग का भूत वाइरल



फ़ार्मर भाइयों पोल्ट्री से जुड़ा हर शख़्स वाइरल से भली भाँति वाक़िफ़ है ओर शायद सबसे ज़्यादा डर फ़ार्मर के मन में अगर किसी चीज़ का बैठा हुआ है ,तो वो है वाइरल । तो आइए इस लेख के माध्यम से वाइरल के बारे में समझने की कोशिश करते है।


 वाइरल इन्फ़ेक्शंज़

- वो रोग या बीमारी। जिनका कारण वाइरस होता है उन्हें वाइरल इन्फ़ेक्शंज़ कहा जाता है ।जैसे की:- रानीखेत ,गुंबारो, इनफ़्लुएंज़ा इत्यादि। विभिन तरह की वाइरल बीमारियों में से फ़ार्मर के लिए सबसे बड़ा व मिस गाइडेड विषय है रेस्प्रिटॉरी (साँस नली का वाइरल) क्योंकि बाक़ी ज़्यादातर गम्भीर वाइरल बीमारियों के लिए वैक्सींज़ उपलब्ध है ,जिनसे सफलतापूर्वक इन बीमारियों से निजात पाई जा सकती है। जैसे की आप ND ओर IBD का vaccine करते है इनसे एक specific वाइरस के प्रति बर्ड में इम्यूनिटी विकसित हो जाती है।

लेकिन जो साँस नली के वाइरल है ,इनकी कारगर वैक्सीन मार्केट में उपलब्ध नहीं है। ओर एक बार इन वाइरल के बर्ड्ज़ पर हमला करने के बाद इन्हें ख़त्म नहीं किया जा सकता ,केवल बर्ड्ज़ की रोग प्रतिरोधक क्षमता हीं इन वाइरस से लड़ती है ओर बर्ड्ज़ का बचाव करती है।क्योंकीं आज तक कोई भी दवा ऐसी नहि बनी जो वाइरस को ख़त्म कर सके क्योंकि वाइरस की अपनी सेल वाल नहि होती ये (Host) मेज़बान की कोशिका पर हमला करता है। ओर ख़ुद को बढ़ाता है। सिर्फ़ बर्ड की रोग प्रतिरोधक क्षमत ही इससे लड़ने में सहायक होती है ओर कुछ समय के बाद वाइरस स्वयं इनैक्टिव हो जाता है।

 इसलिए वाइरल के दौरान केवल बर्ड्ज़ की इम्यूनिटी बढ़ाने पर ध्यान दे। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए Adimmone दें व साँस नली को साफ़ करने के लिए CRD PLUS दें ।ताकीं बर्ड्ज़ को साँस लेने में तकलीफ़ न हो ओर साँस नली में ज़ुकाम(म्यूकस) जमने के कारण मॉर्टैलिटी ना हो।








  •  Adimmone 150-200 ml/1000birds 
  •  CRD plus 150-200 ml/1000 birds 
  •  Ads plus 1ml/ ltr* (4-5 घंटे के पानी में दिन में एक बार ) 


इसके इलावा वाइरल के दौरान साफ़ सफ़ाई ,स्प्रे का खास तौर पर ध्यान रखे ओर पानी साफ़ करने के लिए पानी में ADS PLUS मिलायें । ताकि वाइरल के साथ में बर्ड्ज़ दूसरे बैक्टीरीअ (ई॰ कोलाई॰) इत्यादि की चपेट में ना आए।क्योंकि ज़्यादा नुक़सान तभी होता है जब वाइरल के साथ बर्ड दूसरे बैक्टीरीअ की चपेट में आ जाता है ओर बर्ड्ज़ में CCRD बन जाती है। लेकिन बहुत से फ़ार्मर भाई बर्ड्ज़ में (खच-खच) की आवाज़ होते ही ,बिना कुछ सोचे समझें ऐंटीबायआटिक देना शुरू कर देते है।

ऐंटीबायआटिक के इस्तेमाल के साथ बहुत बड़ी समस्या ये है कि वाइरस के दौरान हीं इसका इस्तेमाल करने पर अच्छें बैक्टीरीअ मरने से इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) टूट जाती है ओर मॉर्टैलिटी एकाएक बढ़ जाती है।

 नोट:- ज़रूरत से ज़्यादा दवाइयाँ देकर ,ये मत सोचिए की आप एक दम से वाइरल से निजात पा लेंगे ,उलटा बर्ड्ज़ स्ट्रेस(तनाव ) में चले जायेंगे ओर नुक़सान उतना ही ज़्यादा होगा। अगर आप इन सब चीज़ों का ध्यान रखेंगे , तो वाइरल के साथ CCRD कम से कम बनेगी ओर आप नुक़सान से बच पाएँगे।

Antibiotics का इस्तेमाल इसके फ़ायदे ओर नुक़सान का आकलन करने के बाद हीं करें ।

Wednesday, 29 May 2019

पोल्ट्री केज बैन...पशु-पक्षी प्रेम या सोची समझी साजिश...

पोल्ट्री केज बैन

मित्रों, हम भली भांति जानते हैं कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के परिदृश्य में तेजी से उभरता हुआ एक विकासशील राष्ट्र है,और यह बात कई विकसित देशों के गले से नहीं उतर रही है।भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा कृषि एवं पशुपालन इसके अभिन्न अंग हैं।यदि हम भारतीय पशुपालन का आंकलन करें तो पाएंगे कि मुर्गीपालन नें सभी पशुपालनों में शीर्षस्थ स्थान प्राप्त कर लिया है।हमारे देश में मुर्गीपालन नें एक सशक्त संगठित उद्योग का स्वरूप ले लिया है और निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर रहते हुए वैश्विक मानचित्र में अंडा उत्पादन में तीसरा तथा ब्रॉयलर उत्पादन में पाँचवाँ स्थान अर्जित कर लिया है।बस यही बात विकसित देशों के आँखों की किरकिरी बनकर इस कहावत को चरितार्थ कर रही है कि "समंदर को बस इतनी सी बात खल गई कि नाव एक कागज की कैसे मुझपर  चल गई"...।




यदि हम भारतवर्ष की शुरुआती दौर का मुर्गीपालन देखें तो पायेंगे कि यह डीप लिटर/free range poultry farming ही थी,और तब इन्हीं विदेशियों नें हल्ला मचाना शुरू किया कि...अरे बाप रे आप भारतीय लोग इतने गन्दे तरीके से मुर्गीपालन करते हो,अरे ये तो बहुत unhygienic है...इससे मुर्गियों को कई बीमारियां होंगी और इनके अंडे और मांस खाने सेआदमियों को भी बीमारियों का शिकार होना पड़ सकता है...आप लोग ये जमीन पर मुर्गीपालन बन्द कीजिये और केज/पिंजरे में मुर्गीपालन कीजिये।विदेशियों ने हमें समझाया कि केज में मुर्गीपालन करने पर अंडे एवं माँस बीमारी रहित तथा साफ सुथरा रहेंगे जिसके सेवन से मनुष्यों को भी बीमारियों का खतरा नहीं रहेगा। भारतीय मीडिया और सरकारों नें भी अंग्रेजों की बात मानी "क्योंकि हम धोती-कुर्ता पहनने वाले भारतीय तो यही मानते हैं ना कि सूट-कोट-टाई पहनने वाला अंग्रेज झूठ थोड़ी ना बोलेगा और खासकर तब जब हमारा मीडिया और हमारी सरकार भी उनकी बातों का समर्थन करे" हम भारतीयों नें उनकी बात मानी और केज में मुर्गीपालन शुरू कर दिया।

हम भारतीयों के सपने में भी यह बात नहीं आई कि ये अंग्रेज हमें अपनी तकनीकि और केज बेचना चाहते हैं ताकि वो हमसे अच्छा खासा मुनाफा कमा सकें,और हमनें अपना पूरा मुर्गीपालन डीप लिटर (जमीन) से हटाकर केज में शुरू कर दिया। मुर्गीपालन के क्षेत्र मेंधीरे-धीरे नई नई वैज्ञानिक तकनीकियां भारत में भी विकसित होने लगीं,और इन विकसित तकनीकियों नें भारतीय मुर्गीपालन को नई ऊंचाइयां और नए आयाम दिए।

भारत में भी कई कम्पनियां केज बनाने लगीं और देश में केज लगाने के साथ साथ विदेशों में भी अपनी तकनीकि तथा केज निर्यात करने लगीं।निस्संदेह भारत में विकसित ये तकनीकियां उत्तम किस्म की तथा सस्ती थीं,बस यही बात विदेशी कंपनियों को चुभ गई,क्योंकि एक बड़ा बाजार उनकी पकड़ से छूटने लगा था,और उन्होनें एक नया षड़यंत्र रचना शुरू किया कि केज में मुर्गीपालन मुर्गियों के साथ एक अमानवीय कृत्य है।अपने इस षडयंत्र में उन्होंनें सबसे पहले अपने साथ में लिया कुछ तथाकथित भारतीय पशुप्रेमी NGO's को तथा भारतीय मीडिया को,जो कि सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक पहलुओं को उज़ागर करने में माहिर हैं लेकिन कभी भी सकारात्मक पहलुओं को उज़ागर नहीं करते हैं।इन दोनों ने विदेशियों के प्रति अपनी स्वामिभक्ति दिखाई और एक NGO की सदस्य ने भारतीय मुर्गीपालन को "केजविहीन" करने हेतु न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर दी।इस जनहित याचिका का सबसे हास्यास्पद पहलू यह है कि जिसे बैटरी ऑपरेटेड केज तथा बैटरी केज में अंतर ही पता नहीं है वो जनहित याचिका दायर कर रही है।

हम इस विषय पर आगे बात करें उससे पहले हमें यह बात समझनी होगी कि वैश्विक परिदृश्य में भारत एक बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है।

प्रत्येक विदेशी कम्पनियों की नजर अपने उत्पादों को बेचने के लिए भारत पर ही रहती है चाहे वह उत्पाद किसी भी श्रृंखला का हो।यदि हम अंडे तथा चिकन (मुर्गी माँस) की बात करें तो भारत में दिन प्रतिदिन इनके उपभोग बढ़ते जा रहे हैं।कई विदेशी कम्पनियों की नजर इस क्षेत्र में है और वो चाहते हैं कि येन केन प्रकारेण यदि इस बात को सिद्ध कर दिया जाए कि भारत में उत्पादित होने वाले अंडे तथा चिकन उत्तम किस्म के नहीं हैं तो ये उत्पाद वो अपने देशों से भारत में निर्यात कर सकेंगे और अच्छा खासा मुनाफा कमा सकेंगे।

विदेशी कम्पनियों को भी यह बात भली भांति पता है कि भारतीय लोग शारीरिक रूप से भले ही आजाद हो गए हों लेकिन मानसिक रूप से वो आज भी गुलाम हैं और इस बात को मानते हैं कि विदेश में बनी हुई चीज भारत में निर्मित चीजों की तुलना में उत्तम होती हैं।बस इसी भारतीय मानसिकता का लाभ उठाकर वे अपने यहाँ उत्पादित अंडे तथा चिकन को भारतीय उपभोक्ताओं को ऊंचे दामों में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं।विदेशी कंपनियां यह भी भली भांति जानती हैं कि समूचे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो सबसे सस्ते अंडों का एवं चिकन का उत्पादन करता है,इस पर गुणवत्ता का प्रश्न चिन्ह लगाकर वे अपने महँगे अंडे एवं चिकन भारतीय बाजार में बेचना चाहते हैं।

हम भारतीय मुर्गीपालक किसान वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित किये गए अंडे एवं चिकन के उत्पादन मापदंड को केज में नियमित स्वरूप से प्राप्त कर रहे हैं।उदाहरण स्वरूप यदि वैज्ञानिकों ने अपने शोधों के आधार पर एक ऐसी लेयर ब्रीड बनाई है जो अपने एक जीवन काल (52 सप्ताह) में 330 अंडे देगी तो समस्त लेयर मुर्गीपालक उससे 52 सप्ताह में 330 अंडे प्राप्त कर रहे हैं।अब यदि इसी मुर्गी को डीप लिटर में पाला जाएगा तो इसका अंडा उत्पादन एक तिहाई रह जायेगा।अब तथाकथित बुद्धिजीवी ये बताएं कि क्या उत्तम है,क्योंकि यदि मुर्गी केज में आरामदायक परिस्थितियों में नहीं है तो वो कैसे अपना सर्वश्रेष्ठ उत्पादन दे सकती है...? और यदि वो डीप लिटर में पूर्ण आरामदायक परिस्थितियों में रहेगी तो अपना सर्वश्रेष्ठ उत्पादन क्यों नहीं दे पाएगी...???

मित्रों, डीप लिटर में मुर्गीपालन करके सिर्फ अंडा उत्पादन ही नहीं घटेगा बल्कि मुर्गियों में कई संक्रामक बीमारियां भी बढ़ेंगी जिनके ईलाज में दवाईयों का खर्च भी बढ़ेगा जो कि अंडों की उत्पादन लागत बढ़ायेगा और  मानव स्वास्थ्य के लिए भी ठीक नहीं होंगा।दाने की खपत (दाना बर्बाद होने के कारण) भी बढ़ेगी,जितनी मुर्गियाँ केज में पाली जा रही हैं उतनी मुर्गियों को डीप लिटर में पालने के लिए तीन गुना ज्यादा जमीन लगेगी।कुल मिलाकर अंडों की तथा चिकन की उत्पादन लागत बढ़ेगी और ये आम भारतीय उपभोक्ता की पहुँच से बाहर हो जाएगा।

भारत कई अन्य राष्ट्रों की तरह प्रोटीन कुपोषण से जूझ रहा है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अंडा कुपोषण से लड़ने का सबसे सशक्त माध्यम है। इन परिस्थितियों में जबकि भारतीय मुर्गीपालक सबसे सस्ता एवं उत्तम किस्म का अंडा उत्पादित कर रहे हैं जो कि धीरे धीरे समूचे भारतवर्ष में स्कूलों तथा आंगनबाड़ियों के मध्यान्ह भोजन में सम्मिलित होता जा रहा है और कुपोषण की भयावह परिस्थितियों को कम करता जा रहा है,मुर्गीपालकों के समक्ष "केज बैन" जैसी परिस्थितियों को उतपन्न करके उनके मनोबल को तोड़ने जैसा है।केज बैन जैसी स्थिति में भारतीय मुर्गीपालन उद्योग कई वर्षों पीछे चला जायेगा,इस उद्योग से करोड़ों लोगों को रोजगार प्राप्त है,उनके समक्ष रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा।

यह प्रकरण माननीय न्यायालय में विचाराधीन है अतः हम समस्त मुर्गीपालक किसान माननीय न्यायाधीशों से गुहार लगाते हैं कि राष्ट्रहित तथा मुर्गीपालक किसानों के हित में निर्णय लेंगे ऐसी हम सब की आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है।

जय हिंद जय भारत...✍️
डॉ. मनोज शुक्ला
पोल्ट्री विशेषज्ञ एवं विचारक
रायपुर,छत्तीसगढ़

Friday, 7 October 2016

Mycotoxicosis Issue in Poultry Farm by poultry feeds

Mycotoxicosis Infection in Poultry






Mycotoxicosis Signs

Diarrhoea
Fatty Liver
Signs vary with the species affected, the mycotoxin, the dose ingested and the period of exposure.
Reduced feed efficiency by flock
Paralysis or incoordination.
Effect weight gain or egg production/hatchability is down.
Increased condemnations.
Kidney damaged

Wednesday, 5 October 2016

Today New Poultry Infection Pic in My Farm

Hello Friends,

Today i found new pic in my farm. could you help me. what exactly ?



Maybe its Mycotoxicoses in my poultry farm?
 

Tuesday, 4 October 2016

FAVUS Fungal Infections in Broiler Poultry

FAVUS (WHITE COMB) Fungal Infections

Favus is an economically less important fungus disease which occurs sporadically. It is caused by Trichophyton magnini.

Symptoms and Lesions

The combs of the affected birds show deposition of thin, white, flour-like material. Slowly, this layer spreads to other featherless parts of the body. Later, the deposits slough off from the skin. Infected skin becomes thickened. At times, infection may spread to gastrointestinal tract and respiratory tract. In the trachea necrotic foci may develop with the formation of yellowish material. Immunity does not develop against favus, hence the disease persists quite often, over a long period of time.

Spread

Infection spreads from one bird to another by direct contact.

Host

Favus affects birds of all age groups and the birds which are kept under poor managemental conditions. It may also affect turkeys and human beings.

Monday, 3 October 2016

CANDIDIASIS Fungal Infections in Broiler Poultry

CANDIDIASIS (THRUSH)Infections

This disease is also economically not very important. It affects birds and human beings sporadically. It is caused by fungus Candida albicans. It forms cream-like colony on Saboraud’s agar. Monilia albicans also produces similar lesions in some birds.

Host 


Candidiasis can be seen in chicken, turkeys, guinea fowls and other caged birds at the onset of the summer season. Morbidity rate may reach 100 per cent. The disease mostly affects young birds of age group between 10 days and 8 weeks.

Candidiasis Symptoms 


Birds show stunted growth, ruffled feathers and loss of appetite. In acute outbreaks chicks may die without showing appreciable symptoms.